वाराणसी। बनारस में रंगभरी एकादशी के दिन से ही होली का खुमार काशीवासियों के सिर चढ़ के बोलने लगा है। घाटों पर भांग, अबीर, गुलाल के साथ तबले और ढोलक की थाप पर सुरों की होली शुरू हो गई है, जो होली के दिन अपने पूरे चरम पर होती है। ऐसा ही नजारा रंगभरी एकादशी की सुबह दशाश्वमेध घाट पर देखने को मिला। जोगीरा के बोल के साथ ही कवियों ने ढोलक और तबले की थाप पर बंगाल में होने वाले चुनाव पर राजनीतिक गानों व कविताओं ने समा बांध दिया। होली में गीतों के साथ जोगीरा के बोल का अपना महत्व है। दशाश्वमेघ घाट पर इसका भी रंग आपको दिख जायेगा। व्यंग्य के फुहार, बनारसी ठाठ, गुलाल के साथ तबले की थाप पर कवी और गायक घाट पर मधमस्त होकर पूरे देश का हाल लोक गीतों और कविताओं में ही बता देते हैं। होरी खेलत राधे किसोरी.. अवध मां होली खेलें रघुवीरा के स्वर घाट और बनारस का नजारा ही बदल देते हैं। समाज की घटना पर चोट करते जोगीरा के बोल के अलावा बनारस में कीर्तन के साथ भी होली की विधा है। रंगभरी एकादशी से बनारस में होली की जो शुरुआत होती है, जो चढ़ते-चढ़ते घाटों पर समा बांध जाता है।कवियों की टोली सामाजिक और राजनीतिक घटनाओं पर चोट करते हुए नजर आने लगते हैं।
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