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कैंसर पीड़ित पत्नी के लिए शिक्षामित्र लगा रहे प्रशासन से मदद की गुहार

सत्येन्द्र कुमार संवाददाता
चकिया/परिवार की दयनीय माली हालत और ऊपर से असाध्य गम्भीर रोग से लड़ रहे पत्नी के सामने मृत्यु दस्तक दे रही हो और लगातार कई वर्षों से चल रहे दवा के इलाज का खर्चा और परिवार सहित बच्चों के पढ़ाई लिखाई का खर्च उठाना कितना मुश्किल होगा यह तो वही व्यक्ति जानता है जो इसे झेल रहा है इसका अन्दाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
मामला चकिया के ग्राम सभा लालपुर का है जहां आलोक रंजन पुत्र श्री देव नारायण सिंह चार बच्चों तथा अपनी मां के साथ अपने निजी घर में रहते हैं।आलोक रंजन प्राथमिक विद्यालय अमरा उत्तरी पर शिक्षा मित्र पद पर कार्यरत हैं।आलोक रंजन की 33 वर्षीय पत्नी सीमा देवी को ब्रेस्ट कैंसर है।कैंसर से पीड़ित हो जाने के कारण पल-पल की जिंदगी से जूझ रही है।

"मां-बाप व चार बच्चों की पढ़ाई लिखाई की है जिम्मेदारी।"

सीमा देवी को शुरुआत में गांठ होने का आभास हुआ जिसका इलाज पति आलोक रंजन के द्वारा होमियोपैथी के दवा से इलाज कराया गया लेकिन कोई आराम नहीं मिला ।जब कोई आराम नहीं मिला को 2018 वर्ष में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में कैंसर विभाग में जांच करवाया गया तो पता चला कि पत्नी को ब्रेस्ट कैंसर है ।इतना सुनते ही आलोक रंजन के पैरों तले जमीन खिसक गई क्योंकि आलोक रंजन को 10000 रुपये मानदेय मिलता है और घर के भारी भरकम खर्च और बच्चों के पढ़ाई लिखाई का खर्च उसी दस हजार रुपये में उठाना पड़ता है।

"पति आलोक रंजन शिक्षा मित्र पद पर हैं कार्यरत दस हजार मिलता है मानदेय।"

लेकिन अपनी पत्नी के इस दर्द को एक पति कैसे सहन कर सकता है।उन्होंने अपने अल्प मानदेय में ही पत्नी का काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और फिर भारत सरकार द्वारा स्थापित होमी भाभा कैंसर अस्पताल वाराणसी में रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी और आवश्यक दवाओं से इलाज कराना शुरू किया लगभग दो वर्षों से चल रहे लम्बे इलाज के बाद जब दवाओं का कोर्स समाप्त हुआ तो कुछ असहज स्थिति उत्पन्न होने के कारण दुबारा जांच में पता चला कि ब्रेस्ट कैंसर फिर दूसरी ओर हो गया।

होमी भाभा कैंसर अस्पताल वाराणसी द्वारा मध्यम इलाज और दवाओं का खर्च दो लाख पचास हजार रुपये का स्टीमेट दिया गया है जो इस महंगाई और अल्प मानदेय में पूरा नहीं किया जा सकता।उन्होंने शासन प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है। ज्ञानशिखा टाइम्स से वार्ता के दौरान आलोक रंजन के साथ उनकी माता जी व पिता के आँखों से आंसू छलक पड़े।उनके पिता देव नारायण बताते हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर वही कहीं मजदूरी भी नहीं कर सकते जिससे परिवार के खर्चों के बोझ को कम कर सकें,अब आगे कैसे इलाज होगा ईश्वर ही जाने।

शिक्षा मित्र आलोक रंजन ने बताया कि हम लोगों का मानदेय भी तीन या चार महीनें बीत जाने पर एक महीनें का मिलता है।उन्होंने आगे बताया कि इस अल्प मानदेय में घर परिवार का खर्च व पत्नी के इलाज का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है।

बता दें कि आलोक रंजन की दो पुत्रियां आस्था,आकांक्षा व दो पुत्र सिद्धार्थ व सार्थक हैं माता प्रभावती देवी हैं।
आलोक रंजन ने अपनी इस समस्या पर शासन का ध्यान आकृष्ट कर मदद की गुहार लगाई है।

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